सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक थी, जो लगभग 2500 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व के बीच विकसित हुई थी। यह सभ्यता मुख्य रूप से वर्तमान पाकिस्तान और भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में विस्तृत थी।
- खोज एवं उत्खनन
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज 1920 के दशक में की गई थी। सर जॉन मार्शल, राखालदास बनर्जी और दयाराम साहनी जैसे पुरातत्वविदों ने हड़प्पा (1921) और मोहनजोदड़ो (1922) के स्थलों की खुदाई कर इस सभ्यता का पता लगाया। बाद में, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी, चन्हूदड़ो आदि अन्य प्रमुख स्थलों की भी खोज हुई।
- भौगोलिक विस्तार
यह सभ्यता लगभग 12 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली थी, जिसमें पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिम भारत, अफगानिस्तान और पश्चिमी नेपाल के कुछ हिस्से शामिल थे।
- नगर नियोजन एवं वास्तुकला
सुनियोजित शहर, ग्रिड प्रणाली पर आधारित सड़कें
पक्की ईंटों से बने घर
जल निकासी प्रणाली और सार्वजनिक स्नानागार
दुर्ग (सिटाडेल) और निचला नगर
- अर्थव्यवस्था
कृषि: मुख्य फसलें जौ, गेहूं, कपास, सरसों आदि थीं।
व्यापार: मेसोपोटामिया (इराक) और फारस (ईरान) से व्यापार संबंध थे।
औद्योगिक विकास: कुम्हारगिरी, कपड़ा निर्माण, धातु कारीगरी और मोहर निर्माण।
- सामाजिक और धार्मिक जीवन
समाज संभवतः वर्गीकृत था।
मातृसत्तात्मक समाज होने के संकेत।
शिवलिंग और देवी माँ की मूर्तियाँ धार्मिक आस्थाओं को दर्शाती हैं।
पशुपति महादेव की मूर्ति एक प्रमुख देवता के रूप में मानी जाती है।
अग्नि पूजा, वृक्ष पूजा और पशु पूजा के प्रमाण।
- लिपि और भाषा
सिंधु सभ्यता की लिपि अभी तक पूर्ण रूप से पढ़ी नहीं जा सकी है। इस लिपि में चित्रलिपि (Pictographic Script) के चिह्न मिलते हैं।
- पतन के कारण
सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के पीछे कई सिद्धांत हैं:
जलवायु परिवर्तन और सूखा
सरस्वती नदी का विलुप्त होना
बाढ़ और प्राकृतिक आपदाएँ
बाहरी आक्रमण (आर्यों द्वारा)
- प्रमुख स्थल और उनकी विशेषताएँ
निष्कर्ष
सिंधु घाटी सभ्यता अपनी उन्नत नगर नियोजन, व्यापारिक संबंधों और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए प्रसिद्ध थी। हालांकि इसकी लिपि अभी तक समझी नहीं जा सकी है, फिर भी यह सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप के प्राचीन इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है।