सिंधु घाटी सभ्यता की सामाजिक संरचना अत्यधिक संगठित और सुव्यवस्थित थी। हालांकि, इस सभ्यता की लिपि अभी तक पूर्ण रूप से पढ़ी नहीं जा सकी है, फिर भी पुरातात्विक उत्खननों से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर इसके सामाजिक जीवन के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें सामने आई हैं।
- वर्गीकृत समाज
सिंधु सभ्यता का समाज स्पष्ट रूप से विभाजित था, जिसमें विभिन्न वर्गों के लोग रहते थे। हालांकि, यह वर्ग विभाजन वर्ण व्यवस्था की तरह कठोर नहीं था, लेकिन यह कार्य-आधारित समाज प्रतीत होता है। प्रमुख वर्ग निम्नलिखित थे:
शासक वर्ग – संभवतः पुरोहित, प्रशासक या व्यापारी थे, जो शासन व्यवस्था संभालते थे।
व्यापारी एवं कारीगर – व्यापारिक गतिविधियों में संलग्न थे, और मोहर, बर्तन, धातु निर्माण आदि का कार्य करते थे।
कृषक एवं श्रमिक वर्ग – ये लोग कृषि, निर्माण कार्य और अन्य श्रम कार्यों में संलग्न थे।
- मातृसत्तात्मक समाज के संकेत
सिंधु सभ्यता में देवी माँ की मूर्तियों और मातृदेवी के पूजन से यह संकेत मिलता है कि समाज संभवतः मातृसत्तात्मक था, जहाँ महिलाओं को सम्मानजनक स्थान प्राप्त था। महिलाओं की स्वतंत्रता और सामाजिक भागीदारी की संभावना भी अधिक थी।
- परिवार एवं रहन-सहन
परिवारों की संरचना एकल या संयुक्त हो सकती थी, लेकिन बड़े और छोटे घरों की मौजूदगी विभिन्न सामाजिक वर्गों की ओर संकेत करती है।
ईंटों से बने बहुमंजिला मकान दर्शाते हैं कि संपन्न वर्ग और सामान्य वर्ग के लोगों में अंतर था।
जल निकासी और स्नानागार से स्वच्छता और स्वस्थ जीवनशैली की झलक मिलती है।
- पोशाक एवं आभूषण
पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए सूती वस्त्र प्रचलित थे।
आभूषणों का विशेष महत्व था, जिन्हें तांबे, कांसे, सोने-चांदी और कीमती पत्थरों से बनाया जाता था।
खुदाई में प्राप्त वस्तुओं से संकेत मिलता है कि महिलाएँ हार, चूड़ियाँ, झुमके और कमरबंद पहनती थीं।
पुरुष भी आभूषण पहनते थे, जिससे समाज में सजने-संवरने की परंपरा का पता चलता है।
- धार्मिक एवं सांस्कृतिक जीवन
पूजा-पद्धति में प्रकृति पूजा, पशुपति महादेव की आराधना, शिवलिंग की पूजा, वृक्ष पूजा आदि शामिल थे।
मृतकों को दफनाने और दाह संस्कार करने की प्रथाएँ प्रचलित थीं।
विभिन्न प्रकार के खेल-कूद और मनोरंजन के साधन उपलब्ध थे, जैसे पासा खेल, नृत्य और संगीत।
- व्यापार एवं व्यवसाय का प्रभाव
समाज में व्यापारी वर्ग को विशेष सम्मान प्राप्त था, क्योंकि व्यापार सिंधु सभ्यता का एक महत्वपूर्ण अंग था।
उद्योग-धंधों में कुम्हारगिरी, धातु-निर्माण, बुनाई, रथ निर्माण, मुहर निर्माण, इत्यादि प्रमुख थे।
व्यापारिक संबंध मेसोपोटामिया, फारस और मिस्र जैसी सभ्यताओं से थे, जिससे समाज में एक बहुआयामी विकास हुआ।
- लिपि और भाषा
सिंधु सभ्यता की लिपि अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है, लेकिन यह चित्रात्मक लिपि थी।
समाज में लेखन और प्रशासन का महत्त्व था, जिससे एक शिक्षित वर्ग की उपस्थिति का अनुमान लगाया जाता है।
निष्कर्ष
सिंधु घाटी सभ्यता का सामाजिक जीवन अत्यधिक संगठित, अनुशासित और विकसित था। समाज में विभिन्न वर्गों के लोग थे, लेकिन वे एक-दूसरे के पूरक थे। महिलाओं को सम्मानजनक स्थान प्राप्त था, और धर्म, व्यापार एवं संस्कृति का समाज पर गहरा प्रभाव था। इस सभ्यता की सामाजिक व्यवस्था एक समृद्ध और उन्नत समाज का संकेत देती है।