पृष्ठभूमि:
सविनय अवज्ञा आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण था, जिसे महात्मा गांधी के नेतृत्व में 12 मार्च 1930 को शुरू किया गया था। यह आंदोलन नमक सत्याग्रह के रूप में शुरू हुआ, जब गांधीजी ने साबरमती आश्रम से दांडी तक 240 मील की पदयात्रा की और वहां समुद्र से नमक बनाकर ब्रिटिश सरकार के नमक कानून का उल्लंघन किया।
उद्देश्य:
- ब्रिटिश शासन द्वारा बनाए गए अन्यायपूर्ण कानूनों का शांतिपूर्ण उल्लंघन करना।
- भारतीयों को स्वराज (स्व-शासन) के लिए प्रेरित करना।
- ब्रिटिश सरकार को आर्थिक रूप से कमजोर करना और उनके राजस्व स्रोतों को चुनौती देना।
- दमनकारी नीतियों के खिलाफ अहिंसक विरोध के माध्यम से जनता को एकजुट करना।
कारण:
- ब्रिटिश सरकार के दमनकारी कानून – भारतीयों पर अनेक कठोर कर लगाए गए, विशेष रूप से नमक कर, जो गरीबों के लिए भी एक आर्थिक बोझ था।
- रॉलेट एक्ट और जलियांवाला बाग हत्याकांड – इन घटनाओं ने भारतीयों में ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष बढ़ा दिया था।
- स्वराज की मांग – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1929 के लाहौर अधिवेशन में ‘पूर्ण स्वराज’ का प्रस्ताव पारित किया, जिससे जनता में स्वतंत्रता की भावना बढ़ी।
- नमक कानून का अन्याय – ब्रिटिश सरकार ने नमक उत्पादन और बिक्री पर एकाधिकार कर रखा था, जिससे आम जनता को महंगे दामों पर नमक खरीदना पड़ता था।
- महामंदी (Great Depression) का प्रभाव – 1929 में वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण भारतीय किसानों और मजदूरों की स्थिति और खराब हो गई, जिससे सरकार के खिलाफ असंतोष बढ़ा।
निष्कर्ष:
सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारत में स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा दी और ब्रिटिश सरकार को भारतीयों की मांगों पर ध्यान देने के लिए मजबूर किया। इस आंदोलन ने जनता को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया और अंततः 1947 में भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया।